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Detail Review: मलयालम सिनेमा में भी मसाला फिल्में बन सकती हैं, उदहारण है ‘कडुवा’
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विस्तृत समीक्षा: कभी-कभी इत्तेफ़ाक़ से मलयालम भाषा में एक पूरी मसाला फिल्म देखने को मिल जाती है, लेकिन तब भी उसकी पटकथा और निर्देशन इतना सधा हुआ होता है कि उस फिल्म की तारीफ किये बगैर रहा नहीं जाता. हाल ही में अमेजन प्राइम वीडियो पर ‘कडुवा’, जिसका अर्थ होता है शेर, रिलीज़ की गयी. नाच गाने को अगर एक पल के लिए छोड़ दिया जाए तो ये फिल्म एक क्लासिक रिवेंज स्टोरी है. प्रसिद्ध निर्देशक शाजी कैलास की हिट फिल्मों की श्रेणी में कडुवा भी जुड़ जायेगी, क्योंकि इसकी कहानी में काफी हद तक सच्चाई है, बस स्टंट्स और एक्शन एकदम मसाला फिल्मों की तरह रखे गए हैं.
फिल्म के हीरो पृथ्वीराज को भी बड़े समय बाद कोई इस तरह की फिल्म करने को मिली है और इसलिए उन्होंने अपने इंटरव्यू में भी कहा है कि उन्हें इस फिल्म को करने में बहुत मज़ा आया और वे इस तरह की और फिल्में करने से पीछे नहीं हटेंगे. मलयालम मसाला फिल्म जिसमें एक्शन है, इमोशन है, डायलॉगबाज़ी है, बेहतरीन स्टंट्स है और खूबसूरत केरल तो है ही, ऐसी कडुवा को देखकर मलयालम सिनेमा के एक और आयाम से भी आपका परिचय हो जायेगा. फिल्म दमदार है, इसे तुरंत देखना चाहिए.
आज कल हीरो को लार्जर देन लाइफ बनाकर प्रस्तुत करने वाली फिल्में फिर से चलने लगी हैं. बाहुबली, पुष्पा, केजीएफ और इसी किस्म की अन्य फिल्में आज कल पसंद की जा रही हैं. उसकी वजह हिंदी फिल्मों का बॉयकॉट भी हो सकता है और इन फिल्मों की कहानी भी. कडुवा को बड़े पर्दे पर देखने का मज़ा कुछ और ही होगा लेकिन फ़िलहाल ये फिल्म अमेजन प्राइम वीडियो पर उपलब्ध है. इस साल की सबसे बड़ी मलयालम फिल्म कडुवा ने बॉक्स ऑफिस पर भी काफी धमाल मचाया था. 1990 के दशक में एक बहुत बड़े प्लांटेशन के मालिक कडुवाकुन्नेल कुरियाचा (पृथ्वीराज) उर्फ़ कडुवा की भिड़ंत हो जाती है आईजी जोसफ चांडी औसेपुकुट्टी (विवेक ओबेरॉय) से.
दरअसल, कडुवा थोड़ा गुस्सैल तो है लेकिन वो हमेशा सही का साथ देता है. उसके गांव के चर्च में एक नया पादरी आता है जिस पर नाबालिग लड़कियों से अकेले में छेड़छाड़ का आरोप लगा होता है. कडुवा उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहता है लेकिन जोसफ की मां की वजह से वो मौका उसके हाथ से छूट जाता है और कडुवा उसकी मां को भला बुरा कहता है. यहां से दोनों की लड़ाई शुरू होती है और जोसफ मौका देख कर अपने राजनैतिक मालिकों की मदद से कडुवा को जेल में डलवा देता है. इस दौरान वो अपने चमचे पुलिसवालों की मदद से कडुवा का प्लांटेशन जला देता है, उसके घर पर बार बार रेड मारता है, कडुवा के पिता की कार के साथ भी तोड़फोड़ करता है.
कोई सबूत न मिलने की वजह से कडुवा बेल पर बहार आ जाता है और अपने शातिर दिमाग से पहले जोसफ के राजनैतिक मालिकों को गद्दी से हटवाने के लिए, विरोधी पार्टी के नेताओं को पैसे खिला कर सर्कार गिरवा देता है. कडुवा पर लगे सभी केस वापस ले लिए जाते हैं और आखिर में जोसफ को भ्रष्टाचार के केस में ससपेंड कर दिया जाता है. जोसफ, एक कुख्यात गुंडे को कडुवा को मारने के लिए भेजता है लेकिन कडुवा उसे भी मार देता है और आखिर में जोसफ से उसकी लड़ाई होती है जहां कडुवा जीत जाता है. जेल में जाते हुए जोसफ, कडुवा को कहता है कि लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है.
पृथ्वीराज की अभिनय क्षमता पर संदेह नहीं हैं लेकिन उनकी बोलती ऑंखें कई बार पूरा का पूरा सीन खींच ले जाती हैं. वो धीमे बोलते हैं, चिल्लाते कम हैं लेकिन मारते समय, पूरे दम ख़म के साथ लड़ते हैं. फिल्म में लाजवाब डायलॉग बाज़ी भी है. लेखक के तौर पर इंडस्ट्री में आये जीनु अब्राहम ने पृथ्वीराज को लेकर एडम जॉन नाम की फिल्म डायरेक्ट भी की है. जीनु ने इस फिल्म में एकदम ताली पीटने वाले डायलॉग डाले हैं जो कि दर्शकों को बहुत पसंद आये हैं. निर्देशक शाजी और लेखक जीनु, दोनों ने ही पृथ्वीराज के साथ पहले भी कई बार काम किया है और इसलिए पृथ्वीराज जैसे संवेदनशील अभिनेता से इस तरह का मसाला रोल करवा पाए हैं. जीनु के एक असिस्टेंट मैथ्यू थॉमस ने भी इस कहानी पर सुरेश गोपी को मुख्या भूमिका में लेकर कडुवा नाम की फिल्म बनाने की घोषणा कर दी थी.
कोर्ट केस हुआ और जीनु केस जीत गए जिस वजह से मैथ्यू की फिल्म नहीं बन पायी. नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी पृथ्वीराज अभिनीत फिल्म “अय्यपनम कोशियम” में बीजू थॉमस नाम के एक और दमदार एक्टर को आईजी का रोल दिया जाने वाला था लेकिन उस फिल्म में भी पृथ्वीराज और बीजू की आपसी लड़ाई थी और कडुवा में भी, तो दर्शकों को कुछ नया देखने को नहीं मिलता. बड़ी खोज के बाद विवेक ओबेरॉय को इस रोल के लिए संपर्क किया गया. कहानी सुनते ही उन्होंने भी हां कह दी थी. विवेक का रोल भी अच्छा है और विवेक ने अपनी पूरी क्षमता से इस रोल को निभाया है. वो पृथ्वीराज से डरते या दबते नहीं हैं बल्कि उसे हराने और नीचा दिखाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं. सिर्फ मार नहीं खाते बल्कि पृथ्वीराज की अच्छी खासी धुलाई भी करते हैं. बाकी कलाकार लगभग साधारण ही हैं क्योंकि फोकस पूरा पृथ्वीराज और विवेक पर ही रखा गया है. कलाभवन शाजॉन और दिलीश पोथन के रोल छोटे हैं लेकिन वे भी अपने अपने रोल में खासा प्रभाव छोड़ते हैं. संयुक्ता मेनन के करने के लिए बहुत ही कम था.
फिल्म में जेक्स बिजॉय का संगीत, एक एक दृश्य को बेहतरीन बना देता है खासकर एक्शन दृश्यों को. कानल कन्नन के स्टंट्स पूरे फ़िल्मी हैं और कहानी में बड़े ही बारीकी से गूंथे हुए हैं. जेल की लड़ाई देख कर तो कई साडी हिंदी फिल्मों के दृश्यों की याद आना स्वाभाविक है लेकिन जो फाइट सबसे अच्छी है वो है पृथ्वीराज को गिरफ्तार करने गयी पुलिस की टीम जब उसे रास्ते में रोक लेती है और उसकी पिटाई करने की बात करती है तो पृथ्वी पूरी की पूरी टीम की जिस अंदाज़ में धुलाई करते हैं, वो मज़ा दिला देती है.
कहानी में नवीनता नहीं थी लेकिन सिनेमेटोग्राफर अभिनंदन रामानुजम ने जिस भव्यता से एक्शन सीन और स्टंट फिल्माए हैं वो फिल्म की स्केल को बड़ा कर देते हैं. इसी वजह से कडुवा ने बॉक्स ऑफिस पर भी धमाल मचाया और 50 करोड़ से ऊपर का व्यवसाय किया. कहानी को प्राथमिकता देने वाली मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के लिए बॉक्स ऑफिस पर सफल फिल्म किसी संजीवनी का काम करती है. जनगणमन और कडुवा, दोनों ही पृथ्वीराज अभिनीत फिल्मों ने मलयालम बॉक्स ऑफिस को थोड़ी राहत दी है. कडुवा एक मसाला एंटरटेनर है हालांकि इसमें नाचगाना पुष्पा की तरह नहीं है फिर भी इस तरह की फिल्म देखने से कुछ और अनुभव होता है वो ये कि अगर कहानी अच्छी हो तो उसे मसाला अंदाज़ में पेश किया जा सकता है और इसे देखने के लिए दर्शक ज़रूर आएंगे.
डिटेल्ड रेटिंग
| कहानी | : | |
| स्क्रिनप्ल | : | |
| डायरेक्शन | : | |
| संगीत | : |
जेक्स बिजॉय/5 |
टैग: फ़िल्म समीक्षा
पहले प्रकाशित : 17 अगस्त, 2022, 10:35 अपराह्न IST
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