The best discounts this week
Every week you can find the best discounts here.
Pro-Ethic Style Developer Men’s Silk Kurta Pajama Set Wedding & Festive Indian Ethnic Wear (A-101)
Uri and MacKenzie Men’s Silk Blend Kurta Pyjama with Stylish Embroidered Ethnic Jacket
Rozhub Naturals Aloe Vera & Basil Handmade Soaps, 100 Gm (Pack Of 4)
Titan Ladies Neo-Ii Analog Rose Gold Dial Women’s Watch-NL2480KM01
BINSBARRY Humidifier for Room Moisture, Aroma Diffuser for Home, Mist Maker, Cool Mist Humidifier, Small Quiet Air Humidifier, Ultrasonic Essential Oil Diffuser Electric (Multicolour)
Fashion2wear Women’s Georgette Floral Digital Print Short Sleeve Full-Length Fit & Flare Long Gown Dress for Girls (LN-X9TQ-MN1D)
गांव की दीवारों को ब्लैकबोर्ड बनाया, चौराहों को क्लासरूम: अटेंडेंस के लिए पेरेंट्स को सम्मानित करते हैं माधव सर, आज नेशनल अवॉर्ड मिलेगा
[ad_1]
- हिंदी समाचार
- आजीविका
- मास्साब शिक्षक दिवस विशेष श्रृंखला एपिसोड 1 माधव प्रसाद पटेल मध्य प्रदेश कहानी
16 मिनट पहलेलेखिका: उत्कर्षा त्यागी
- कॉपी लिंक
मध्य प्रदेश के दमोह जिले के लिधौरा गांव में हर चौराहे पर बच्चे पढ़ते हुए दिखाई देते हैं। किसी भी गली में घुस जाओ तो गली के आखिर में किसी दीवार पर गणित, साइंस के फॉर्मूले लिखे दिखेंगे। बच्चे घूमते-फिरते, दौड़ लगाते हुए इन्हें पढ़ा करते हैं। गली से गुजरता कोई शख्स बच्चों को रोकता और दीवार पर लिखा पढ़कर सुनाने को कहता है। बच्चे नहीं पढ़ पाते तो उन्हें बताता है। पूरा का पूरा गांव ही जैसे क्लासरूम बन गया है।

दमोह जिले के लिधौरा गांव में हर गली में ऐसे क्लास लगती है।
ये कमाल करने वाले गांव के मास्साब हैं ‘माधव प्रसाद पटेल’। माधव उन 50 टीचर्स में से एक हैं, जिन्हें आज टीचर्स डे के मौके पर नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया जा रहा है। 40 साल के माधव दमोह जिले के शासकीय लिधौरा मिडिल स्कूल में छठी से 8वीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। उनकी क्लास की अटेंडेंस भी हमेशा 96% से ज्यादा ही रहती है।
इसकी वजह ये है कि जब भी कोई बच्चा क्लास में नहीं आता, तो माधव उसके दोस्तों को उसके घर बुलाने भेज देते हैं।
कोविड के समय लगाई थी मोहल्ला क्लास
कोविड के समय बच्चे स्कूल नहीं जा सकते थे, ऐसे में माधव को मोहल्ला क्लास का आइडिया आया। इसके लिए उन्होंने कुछ सीनियर स्टूडेंट्स को अपने साथ जोड़ा और सभी को अपने-अपने मोहल्ले के बच्चों को इकट्ठा कर पढ़ाने को कहा। आज पूरा गांव कहता है कि उनके इस आइडिया से ही बच्चों का लर्निंग गैप भर पाया।

कोरोना काल से ही गांव के हर मोहल्ले में बच्चों को पढ़ाने के लिए गली में ही पाठशाला लगती है।
माधव कहते हैं, ‘मैंने बच्चों के घर के आस-पास बोर्ड बना दिए, ताकि जब भी बच्चे आपस में खेलें तो बोर्ड के सहारे खेल-खेल में कुछ पढ़ते भी रहें। हम उनके घर नहीं जा सकते थे तो उन्हीं के आसपास के लोगों को अपने साथ जोड़ा। जब ये आइडियाज सफल रहे, तो कोविड के बाद उनको थोड़ा मॉडिफाई करके हमने कंटीन्यू किया।’
बच्चों को स्कूल बुलाने के लिए टोलियां बनाईं
कोविड के बाद बच्चों को वापस स्कूल लाना टीचर्स के लिए सबसे बड़ा चैलेंज था। कई बार बच्चों का स्कूल आने का मन ही नहीं करता था। ऐसे में माधव ने बच्चों की टोलियां बनानी शुरू कीं। यानी एक बच्चा घर से निकलकर दूसरे के यहां जाएगा, फिर वो दोनों तीसरे के यहां और फिर वो तीन चौथे के यहां जाएंगे। इस तरह एक चेन बन जाएगी।
इस तरह अगर किसी बच्चे का स्कूल आने का मन नहीं भी होता है, तो वो भी आ जाता है। अगर कोई फिर भी नहीं आ पाता है, तो उसके स्कूल न आने का कारण पता चल जाता है। अगर फिर भी टीचर्स को लगता है कि बच्चा जानबूझकर नहीं आया है, तो वो उसके घर जाकर स्टूडेंट को लेकर आते हैं।

पूरे मोहल्ले के सामने पेरेंट्स को सम्मानित किया
माधव कहते हैं, ‘सप्ताह में जो बच्चा सबसे ज्यादा दिन स्कूल आया, उसे हमने प्रार्थना सभा में सम्मानित करना शुरू किया। बोर्ड पर उसका नाम लिखा जाने लगा। इससे दूसरे बच्चों में ये सकारात्मक सोच आई कि हमें भी अपना नाम बोर्ड पर लिखवाना है।
जिन पेरेंट्स का बच्चा महीनेभर में सबसे ज्यादा स्कूल आया, उनके घर जाकर पूरे मोहल्ले के सामने उन्हें सम्मानित किया। मोहल्ले वालों ने देखा कि इतने टीचर्स आ गए, इतने लोग आ गए, आखिर हुआ क्या है। तो पता चला कि इनका बच्चा सबसे ज्यादा दिन स्कूल गया है, इसलिए इनका सम्मान यहां पर हो रहा है। इससे दूसरे पेरेंट्स ने भी प्रेरणा ली और हमारे स्कूल में अटेंडेंस बढ़ती चली गई।
हम 15 अगस्त को उस बच्चे को सम्मानित करते हैं जो पूरे सेशन में सबसे ज्यादा दिन स्कूल आया है। साथ ही उसके पेरेंट्स को भी सम्मानित करते हैं। पूरे गांव के सामने जब पेरेंट्स सम्मानित हुए तो दूसरे लोगों ने भी देखा। वो भी अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा स्कूल भेजने लगे।’

जिस बच्चे की अटेंडेंस स्कूल में अच्छी होती है, माधव उनके माता-पिता को सम्मानित करते हैं।
जगह-जगह लर्निंग बोर्ड लगाए
माधव बताते हैं, ‘बच्चा स्कूल में सिर्फ 6 घंटे ही रहता है। उसके बाद घर में ही रहता है। ऐसे में मैंने सोचा कि बच्चों को स्कूल के अलावा भी पढ़ाई की जरूरत है। मैंने स्कूल के पूर्व छात्र, गांव के कॉलेज पास आउट स्टूडेंट्स से बात की। उनसे कहा कि आप लोग जब भी फ्री हों तो बच्चों को पढ़ाने में थोड़ा सहयोग कर दो। उन सभी ने हामी भर दी।
अब बात आई कि रिसोर्सेज नहीं है। ऐसे में मैंने गांव में कुछ जगह चिह्नित कीं, जहां बैठने लायक जगह हो। यहां दीवार पर ब्लैकबोर्ड वाला पेंट करवा दिया। पूर्व छात्रों को चॉक- डस्टर वगैरह दे दिया। अब उन्हें जब भी वक्त मिलता है, वो आसपास के बच्चों को इकट्ठा करके उन्हें पढ़ाते हैं।’
दीवारों पर फॉर्मूले लिखे, बच्चे आते-जाते पढ़ते हैं
‘कई चीजें ऐसी होती हैं जो बच्चों को क्लास में एक बार में सही से समझ नहीं आती।’ माधव का कहना है कि साइंस और मैथ्स के फॉर्मूले रिवाइज करना बहुत जरूरी है। इसके लिए उन चौराहों और गलियों में हमने फॉर्मूले लिखवा दिए, जहां बच्चे अक्सर खेलने जाते हैं।
बच्चे स्कूल से आते-जाते या खेलते हुए इन फॉर्मूलों पर नजर डालते हैं। इसके अलावा कोई गांव वाला बच्चों से पूछता है कि क्या लिखा है। फिर बच्चे उन्हें पढ़कर बताते हैं। अगर कोई बच्चा गलत पढ़ता था तो कई लोग उसे सही करके बताते हैं। इस तरह लर्निंग प्रोसेस बेहतर होती है।

मोटरसाइकिल पर पेरेंट्स तक पहुंचाई लाइब्रेरी
माधव पेरेंट्स को भी बच्चों की लर्निंग प्रोसेस से जोड़ना चाहते थे। इसलिए स्कूल के टीचर्स जब भी पेरेंट्स से मिलने उनके घर जाते, तो मोटरसाइकिल पर लाइब्रेरी की किताबें रखकर ले जाते। जैसे ही वो पेरेंट्स के पास पहुंचते तो पेरेंट्स किताबें देखने लगते। इससे उन्हें पता चलने लगा कि स्कूल की लाइब्रेरी में किस तरह की किताबें हैं।
टीचर्स पेरेंट्स से कहते कि ये किताबें हमारी लाइब्रेरी में हमारे बच्चे भी पढ़ते हैं तो पेरेंट्स ने फिर अपने बच्चों से पूछना शुरू किया कि ‘पानी की खोज’ किताब पढ़ी थी, क्या लिखा है उसमें, कौन-सी कहानी है। या ‘बीजू भाई’ किताब पढ़ी थी, उसमें क्या है। इसके बाद बच्चों में उत्सुकता होने लगी किताबें पढ़ने की। इस तरह एक तो पेरेंट्स लाइब्रेरी से जुड़ गए, दूसरा जो बच्चे बहाना बनाते थे, ना-नुकुर करते थे, वो भी किताबें पढ़ने लगे।

माधव बच्चों के पेरेंट्स को भी किताबों के बारे में बताते हैं ताकि वे बच्चों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
7 मिनट की प्रेजेंटेशन से हुआ सिलेक्शन
नेशनल अवॉर्ड के लिए शिक्षा मंत्रालय एक फॉर्म जारी करता है। जिसमें बहुत सारे क्राइटेरिया होते हैं। जो उन्हें फुलफिल करता है, वो ये फॉर्म भर सकता है। इसके बाद डिस्ट्रिक्ट की कमेटी परफॉर्मेंस देखकर 3 नाम स्टेट की कमेटी को भेजती है। स्टेट की कमेटी फिर 6 नाम सेंट्रल गवर्नमेंट यानी शिक्षा मंत्रालय को भेजती है। फिर ज्यूरी के सामने प्रेजेंटेशन देना होता है। जूरी क्रॉस क्वेश्चनिंग करती है। इसके बाद अवॉर्ड को लेकर आखिरी फैसला ज्यूरी ही लेती है।
माधव प्रसाद पटेल ने ज्यूरी के सामने अपना 7 मिनट का प्रेजेंटेशन दिया था। इसमें उन्होंने बच्चों के साथ अपनी पूरी जर्नी के बारे में बताया। इसके बाद ज्यूरी को उनका काम पसंद आया और उन्हें अवॉर्ड के लिए सिलेक्ट कर लिया गया।

माधव कहते हैं, ‘सरकारी काम-काज में हमेशा ये शर्त होती है कि थोड़ा एक्स्ट्रा काम करना होता है। स्कूल के पहले और स्कूल के बाद 1 घंटा देना कोई बड़ी बात नहीं है। हमारे पास एक पीरियड 40 मिनट का होता है। हम 25-30 मिनट पढ़ाते हैं और उसके बाद बच्चों का फीडबैक लेते हैं तो अगर हर दिन हम 5-10 मिनट पढ़ाने का बढ़ा दें तो बच्चों की पढ़ाई बेहतर ढंग से करा सकते हैं। कहीं न कहीं बात इच्छाशक्ति की ही है। अगर हम डिवोटेड हैं तो ये एक्स्ट्रा काम मायने नहीं रखता।’
अगले एपिसोड में कल पढ़िए और सुनिए, बिहार के उस टीचर की कहानी जिसने टेक्नोलॉजी से पाठशाला को स्मार्टक्लास में बदल दिया।
[ad_2]
Related
Recent Posts
- हॉकी इंडिया ने सीनियर वूमेन नेशनल चैम्पियनशिप में पदोन्नति और आरोप प्रणाली का परिचय दिया
- देखो | तमिलनाडु के लोक कला का खजाना: कन्यान कूथु के अभिभावकों की कहानी
- मर्सिडीज मेबैक के वर्ग मूल्य में लक्जरी आराम और प्रदर्शन – परिचय में शामिल हैं
- यहाँ क्या ट्रम्प, ज़ेलेंस्की और वेंस ने ओवल ऑफिस में गर्म तर्क के दौरान कहा था
- बटलर ने इंग्लैंड के व्हाइट-बॉल कप्तान के रूप में इस्तीफा दे दिया