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एक शो के 20-30 रुपए मिलते थे: कैंसर से गुजरीं पत्नी, सफलता नहीं देख पाईं; फिल्में बहुत कीं, लेकिन ‘ACP प्रद्युम्न’ बन हर घर छाए
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मुंबई17 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी और अभिनव त्रिपाठी
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इस बार की सक्सेस स्टोरी में कहानी एक्टर शिवाजी साटम की। वे फेमस टीवी शो CID में ACP प्रदुम्न के रोल में दिखते हैं।
कुछ तो गड़बड़ है दया…ये डायलॉग सुनते ही दिलों-दिमाग पर एक व्यक्ति की तस्वीर छप जाती है। एक ऐसा व्यक्ति जिन्हें लोग सच में CID का ऑफिसर समझने लगे थे। हम बात कर रहे हैं शिवाजी साटम की। वैसे तो इन्होंने दर्जनों हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया है, लेकिन इनकी असल पहचान CID के ACP प्रदुम्न के रोल से है।
शिवाजी साटम महाराष्ट्र से आते हैं। पिता मिल में मजदूरी करते थे। एक चॉल थी, उसी में 15 लोगों के साथ इनका बचपन बीता।
घर के आस-पास हर साल गणपति उत्सव होता था। किसी ने एक दिन शिवाजी को स्टेज पर धकेल दिया। वहां से पहली बार एहसास हुआ कि वे एक्टिंग भी कर सकते हैं।
शिवाजी ने मराठी थिएटर का रुख किया। वहां एक शो के सिर्फ 20 से 30 रुपए ही मिलते थे। हालांकि, थिएटर में काम करने की बदौलत ही उन्हें बैंक में नौकरी मिल गई।
21 अप्रैल, 1950 को जन्मे शिवाजी साटम की संघर्ष से सफलता की कहानी, उनकी जुबानी..
पिता मिल में मजदूर थे मेरा जन्म मुंबई के भायखला में हुआ था। वहां अधिकतर मिल में काम करने वाले और मजदूर वर्ग के लोग रहते थे। पिताजी भी टेक्सटाइल मिल में नौकरी करते थे। 14-15 लोगों की पूरी फैमिली एक चॉल में रहती थी। चार मंजिला चॉल के सबसे ऊपरी फ्लोर पर हम लोग रहते थे। 10*10 एरिया वाले दो कमरे थे। जैसे चॉल में एक कमरे के ऊपर दूसरा कमरा होता है, मेरा भी वैसा ही था।
पिता ने ओवर टाइम करके अंग्रेजी स्कूल में दाखिला कराया माता-पिता ने मुझे अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष किया। खासतौर पर पिताजी ने बहुत किया। वे खुद लेबर थे, लेकिन मुझे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाया। यही नहीं, पढ़ने के लिए बोर्डिंग स्कूल भी भेजा। पिताजी को पता था कि इतना सब वे एक लेबर वाली सैलरी में अफोर्ड नहीं कर पाएंगे। उन्होंने खुद भी अंग्रेजी सीखी और एक स्कूल में ओवर टाइम करके बच्चों को पढ़ाया।
पिताजी ने हमें अंग्रेजी सिखाने पर बहुत जोर दिया। वे जानते थे कि आने वाले समय में इस भाषा का महत्व बहुत बढ़ने वाला है। वे हर रविवार को अंग्रेजी अखबार मंगवाते और सारे बच्चों से जोर-जोर से रीडिंग लगाने को कहते।

पहली बार गणपति उत्सव में परफॉर्म करके लाइमलाइट में आए हमारे एरिया में हर साल बड़े धूम-धाम से गणपति उत्सव मनाया जाता था। हर रात वहां नाटक होते थे। मैं बड़े चाव से नाटक देखने चला जाता था। एक दिन दोस्तों ने मुझे जबरदस्ती स्टेज पर धकेल दिया।
पहली बार परफॉर्म किया तो मजा भी आया। पहली बार अभिनय को लेकर अंदर एक लौ जली। गणपति उत्सव में एक दिन चीफ गेस्ट के तौर पर मशहूर मराठी थिएटर आर्टिस्ट बाल धुरी जी को बुलाया गया था। बाल धुरी जी ने मेरा काम देखा। उन्हें पसंद आया।
किसी दूसरे आर्टिस्ट ने छुट्टी ली, तब इन्हें रोल मिल गया बाल धुरी जी को अपने प्ले में एक कैरेक्टर के लिए एक्टर की जरूरत थी। मौजूदा एक्टर किसी कारणवश छुट्टी पर चला गया था। तब उन्होंने मुझे प्ले में काम करने का ऑफर दिया। पहले तो लगा कि यह सब मेरे बस का नहीं है। बाद में दोस्तों ने प्रेशर डलवाकर शो जॉइन करा दिया। पूरा शो हाउसफुल था।
इतने लोगों को सामने देख मेरे पैर कांपने लगे। जैसे-तैसे करके अपना शॉट कम्प्लीट किया। अब शुरुआत हो गई तो ठहरने का नाम नहीं लिया।

थिएटर की वजह से ही बैंक में नौकरी मिली थिएटर में काम करने की वजह से ही मुझे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी मिली थी। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार की उस वक्त एक पॉलिसी थी। वे हर साल मराठी थिएटर से चार लोगों को चुनते थे और उन्हें सरकारी नौकरी देते थे। हालांकि ऐसा नहीं था कि किसी को भी उठाकर सरकारी नौकरी दे दी जाए। सैकड़ों कलाकारों में सिर्फ उन्हीं चार लोगों को चुना जाता था, जिनमें काबिलियत हो।
थिएटर आर्टिस्ट को हर शोज के 20 से 30 रुपए मिलते थे। सरकार को पता था कि इतने पैसों से कुछ होने वाला नहीं है। इसी वजह से उन्होंने यह पॉलिसी चलाई, ताकि कम से कम कुछ लोगों को ही लाभ मिल जाए।
पहली हिंदी फिल्म के लिए 500 रुपए मिले थिएटर में काम करने के दौरान मुझे मराठी फिल्मों के ऑफर आने लगे। इसके बाद 1988 में पहली हिंदी फिल्म ‘पेस्टनजी’ मिली। इस फिल्म में अनुपम खेर, नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी जी की अहम भूमिका थी। मुझे यह फिल्म विजया मेहता के जरिए मिली थी। विजया मेहता इस फिल्म की स्क्रीनप्ले राइटर थीं।
उस वक्त मैं बैंक में नौकरी करता था। विजया मेहता ने पूछा कि क्या तुम टाइम निकालकर कुछ देर के लिए शूट पर आ सकते हो? मैंने हामी भर दी। फिल्म में मैंने डॉक्टर का एक छोटा सा रोल किया था। इसके लिए मुझे 500 रुपए मिले थे।

इन्हें देखते ही प्रोड्यूसर ने CID बनाने की मंशा बना ली 1985 की बात है। मैं पहली बार बीपी सिंह (CID के प्रोड्यूसर) से मिला। उस वक्त वे एक डॉक्यूमेंट्री बना रहे थे। एक कॉमन फ्रेंड के जरिए हमारी मुलाकात हुई थी। वे एक क्राइम शो बनाना चाहते थे।
हमारी बातचीत हुई। उन्होंने मेरे साथ CID बनाने की मंशा बना ली। 1992 में हमने इसका पायलट एपिसोड (पहला ट्रायल एपिसोड) रिलीज किया। हालांकि फुल फ्लेज्ड शो शुरू होने में 6 साल का लंबा वक्त लग गया। दरअसल, मैं थिएटर करता था, मेरे पास डेट्स की बहुत कमी थी।
बीपी सिंह इसी बीच एक दिन मेरा शो देखने थिएटर पहुंचे। उन्होंने मेरे प्रोड्यूसर महेश मांजरेकर से कहा कि शिवाजी को मुझे दे दो। महेश ने मना कर दिया।
महेश और बीपी सिंह में हल्की-फुल्की मजाक-मस्ती चलती थी। समय के साथ धीरे-धीरे मेरे शोज कम होते गए। इसी के साथ CID के लिए रास्ते खुलते गए। मैंने शो में काम करना शुरू कर दिया। फिर मेरा पूरा फोकस इसी शो पर हो गया। 1998 में शो पूरी तरह शुरू हुआ और तब से हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

CID के बंद होने पर लता जी भी दुखी थीं मैं आपको बताऊं कि जब CID ऑफ एयर हुआ तो लता मंगेशकर जी भी काफी दुखी थीं। उन्हें हमारा शो बहुत पसंद था। CID में काम करने वाले हर शख्स को वे फेस और नेम दोनों से जानती थीं। वे हमें अक्सर खाने पर भी बुलाती थीं।
अभी कुछ दिन पहले की बात है। रनिंग शो के बीच मेरे पास आशा भोसले जी का फोन आया। उन्होंने पूछा कि शो कैसा चल रहा है? हमारे बीच 10 मिनट तक बातचीत हुई। जब उन्होंने बैकग्राउंड में आवाजें सुनीं तो समझ गईं कि शूटिंग चल रही है। फिर उन्होंने फोन रख दिया। इन लोगों के प्यार की वजह से शो इतने साल चला और अब दोबारा स्टार्ट हुआ है।
CID के नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड, सिंगल टेक में शूट किया एपिसोड 2006 में CID के एपिसोड में वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया था। पूरी टीम ने 111 मिनट का एपिसोड एक सिंगल टेक में शूट किया था। इसके लिए 6 दिन रिहर्सल करनी पड़ी थी। गिनीज और लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसका जिक्र है।

दूसरे सीजन को मिल रही अच्छी TRP CID का दूसरा सीजन सोनी टीवी पर 21 दिसंबर 2024 से टेलिकास्ट हो रहा है। सीजन-1 ने 21 साल दर्शकों का मनोरंजन किया। अब दूसरे सीजन ने भी व्यूअरशिप का रिकॉर्ड बनाना शुरू कर दिया है। सोनी टीवी पर जितने स्क्रिप्टेड शोज आते हैं, उनमें CID सीजन-2 की TRP सबसे ज्यादा है।
कम उम्र में पत्नी का निधन हुआ शिवाजी ने इंटरव्यू के अंत में कहा, ‘मुझे अपने जीवन में एक ही दुख है। मैं सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ता गया, लेकिन यह देखने के लिए मेरी पत्नी इस दुनिया में नहीं हैं। बहुत कम उम्र में कैंसर की वजह से वे दुनिया से चली गईं। काश, वे मेरी सफलता देख पातीं।’
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पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी यहां पढ़ें..
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