आरक्षण की राजनीति

आरक्षण की राजनीति

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आरइन दिनों मंच पर आहुल गांधी एक पतली सी लाल किताब लेकर आते हैं। यह भारत का संविधान है—ईस्टर्न बुक कंपनी का कोट पॉकेट संस्करण जिससे युवा वकील परिचित हैं। इसे हाथ में लिए कांग्रेस नेता, जो 4 जून को लोकसभा के नतीजे आने के ठीक 15 दिन बाद 54 साल के हो जाएंगे, इसकी रक्षा करने की कसम खाते हैं। उनकी भाषा दिवंगत कांशीराम और ऑक्युपाई आंदोलन का एक चतुर मिश्रण है—दो ऐसे स्रोत जो पहली नज़र में असंभव लगते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, स्वर की गंभीरता को जीवंत जोर के साथ मिलाते हुए, जैसा कि केवल वे ही कर सकते हैं, इन दिनों अपना ही राग अलापते हैं। 17 मई को इंडिया टुडे को दिए अपने साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “मैं संविधान की रक्षा अपनी जान देकर भी करूंगा।” एक गरमागरम चुनाव में प्राण न्यौछावर करने वाली दो विपरीत पार्टियां एक ही बात का वादा क्यों कर रही हैं?

मनोज जरांगे-पाटिल मुंबई में मराठा आरक्षण के लिए प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए, 27 जनवरी; (फोटो: हिंदुस्तान टाइम्स)

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